आजु नाथ एक व्रत महा सुख लागल हे । कोकिल कवि विद्यापति - Mithilakshar Lipi

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Monday, September 12, 2016

आजु नाथ एक व्रत महा सुख लागल हे । कोकिल कवि विद्यापति

आजु नाथ एक व्रत महा सुख लागल हे ।
तोहे सिव धरु नट भेस कि डमरु बजाबह हे ।।
तोहे गौरी कहै छह नाचय हमें कोना नाचब हे ।।
चारि सोच मोहि  होय कोन बिधि बाँचब हे ।।
अमिअ चुमिअ मूमि खसत बघम्बर जागत हे ।।
होएत बघरम्बर बाघ बसहा धरि खायत हे ।।
सिरसँ ससरत साँप पुहुमि लोटायत हे ।।
कातिक पोसल मजूर सेहो धरि खायत हे ।।
जटासँ छिलकत गंगा भूमि भरि पाटत हे ।।
होएत सहस मुख धार समेटलो नही जाएत हे ।।
मुंडमाल टुटि खसत, मसानी जागत हे ।।
तोहें गौरी जएबह पड़ाए नाच के देखत हे ।।
भनहि विद्यापति  गाओल गाबि सुनाओल हे ।।
राखल गौरी केर मान चारु बचाओल हे ।।

कोकिल कवि विद्यापति रचित नचारीक मिथिलाक्षर सम्पादन  : विनीत ठाकुर

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