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Wednesday, September 14, 2016

राधा विरह – कविश्वर चन्दा झा

                                     राधा विरह
                                                 – कविश्वर चन्दा झा

भासलि नाव अगम जल सजनी पवन बहय बड़–जोर ।।
एकसरि नारी कुदिन फल सजनी हठ मति नन्दकिशोर ।।
के कह की गति होइत सजनी थर–थर जिव मोर काँप ।।
दुर जनि एकओ होयति सजनी उपगत पुरविल पाप ।।
जननी हमर जरातुर सजनी तकइति हयतिह वाट ।।
विकल हृदय नहिं किछु फुर सजनी की विधि लिखल ललाट ।।
कृष्ण ‘चन्द्र’ कर सोपल सजनी दुरलभ अपन शरीर ।।
मनमथ दृढ आरोपल सजनी भागहि पायब तीर ।

मिथिलाक्षर सम्पादन : विनीत ठाकुर
मिथिलेश्वर मौवाही–६, धनुषा

Maithili : Tirhuta / Mithilakshar

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