३७.
जीर्ण पोखरि
मुँह बावि सितुवा
उगले मोती ।
३८.
रातुक शेर
दिन मे लटकल
उन्टा बादुर ।
३९.
साँचे टिटही
आकाश के लोकत
टाङ उठा कऽ ।
४०.
पोखरि कात
गोरल रहठा मे
घोंघही बास ।
जीर्ण पोखरि
मुँह बावि सितुवा
उगले मोती ।
३८.
रातुक शेर
दिन मे लटकल
उन्टा बादुर ।
३९.
साँचे टिटही
आकाश के लोकत
टाङ उठा कऽ ।
४०.
पोखरि कात
गोरल रहठा मे
घोंघही बास ।
मैथिली भाषाक वसुन्धरा हाइकु संग्रह । हाइकु कविता १७ अक्षर मे मात्र लिखल
जाइत अछि । एकरा विश्वके सभसँ छोट शूत्र–वद्ध कविता सेहो कहैत छै । ई जापान
सँ आयातित कविता अछि । Maithili lipi
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