हुनक
हाइकु के प्रकृति पक्ष मजबूत छन्हि । छोट शब्द मे प्रकृतिक जे सौन्दर्यक व्याख्या हुनक हाइकु मे आएल अछि ओ मुग्धकारी अछि । किछु हाइकु के देखि स्वतः एकर भान भऽ जाएत :–
वर्षाक बुन्द
इन्द्र धनुषी रुप
धन्य
प्रकृति ।
प्रचण्ड गर्मी
छटपट
दादुर
भथल
कूप ।
उपर
के किछु पंक्ति मे जेना प्रकृति सजीव भऽ आगा मे ठाढ़ भऽ गेल हो । कूप मे बास बनौने बेंग प्रचण्ड गर्मी सँ सुखल अपना बासक अभावे कोना छटपटा रहल अछि, एहि दृश्यबिम्ब के ठाढ़ करैत कवि (
हाइकुकार ) सम्पूर्ण परिवेश के जीवन्त कऽ देने छथि ।
कचबचिया
करैए
कचबच
पहर
बोध ।
विशुद्ध गाम–घरक अप्पन सांस्कृतिक परिवेश आ तकरा परम्परागत मान्यताक शब्द मे रुपान्तरण । हम मुग्ध छी एहि कविक बिम्बक पकड़ आ तकर सन्धान पर । विनीतजी खूब समधानि कऽ मैथिली काव्य साहित्य जगत मे हाइकुक स्थापना कएलनि अछि ।
मनुक्खक आम जिनगीक पल–पल घटैत घटना आ तकर प्रभावक मूल्यांकन कतौ एहनो भऽ सकैछ :–
मगरमच्छ
दयालु
साधु लग
बहाबे
नोर ।
हाइकुक शब्द अनुशासन के बेसी हद धरि आत्मसात करैत प्रकृति आ मानवीय धरातलक सूक्ष्म तरंग के अपन शब्दक तूलिका सँ जाहि तरहेँ हृदयग्राही विधाक निर्माण कएलनि अछि – मैथिली साहित्य हुनक एहि शब्द कौशल सँ समृद्ध भेल अछि । हमरा लगैत अछि आबऽ बला समय मे हाइकुक सूक्ष्म अन्तरिक्ष मे विचरण करैत बहुतो नामधारी ग्रह–उपग्रहक मध्य विनीतजीक ई नवका उपग्रह ‘वसुन्धरा’पठनीय
आ संग्रहणीय कृतिक रुप मे समादृत होयत से हमरा विश्वास अछि ।
रामभरोस कापडि़ 'भ्रमर’
पूर्व सदस्य
नेपाल प्रज्ञा–प्रतिष्ठान
कमलादी, काठमाण्डू
Maithili Haiku by Binit Thakur / Ram Bharosh Kapari 'Bhramar' / Maithili Literature | Maithili poet
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