हाइकु अन्तरिक्षक एकटा नव उपग्रह : वसुन्धरा
गढि़कऽ रचना करब हमरा कहियो नीक नहि लागल । हम ओहन रचना के गढ़ब बुझैत छी जाहि मे लेख्य अनुशासनक बात कहल जाइत होइक । यथा गजल लेखन, कोनो विशेष अवसरक गीत लेखन आ कविता लेखन । आब त तेहने काव्य अनुशासनक परिधि मे रहि नव प्रयोग हाइकु लेखन आयल अछि ।
मैथिली भाषाक क्षेत्र मे सेहो हाइकु बेस लोकप्रिय भेल जा रहल अछि । जापान सँ आएल ई काव्य विधा हिन्दी, नेपाली होइत मैथिली भाषा मे सेहो प्रयोग होमय लागल अछि । एहि विधा के पुस्तकाकार प्रकाशन
होइत अछि ।
कहल जाइछ जापानी कवि आरकिन्दा मोरिताके ( १४४२ – १५४० ई.
) मे पहिल बेर हाइकु लिखलनि, यद्यपि तहिया एकरा ‘हाइकाइ’ कहल जाइत छल । हाइकु त बहुत बाद मे नामकरण भेल । मोरिताकेक हाइकु
देखू :–
खसल फूल
डाढि़ पऽ घूरत की
देख, तितली । ( मैथिली अनुवाद )
नेपाल मे हाइकु लिखनिहार नेपाली
कविक कमी नहि अछि । ओना वि.सं. २०१९ साल मे शंकर लामिछाने
'रुपरेखा' पत्रिका मे पहिल बेर हाइकु कविता प्रकाशित करौने छलाह ।
तखन ‘वसुन्धरा’हाइकु संग्रह पर विचार करबा सँ पूर्व हाइकुक काव्य अनुशासन पर ध्यान दी त उत्तम रहत । हाइकुक काव्य अनुशासन पर अपन विचार रखैत डा. जगदीश व्योम लिखैत छथि :–
१= हाइकु सत्रह वर्ण मे लिखल जाय बला सब सँ छोट कविता थिक । एहि मे तीन पाँति रहैछ, जाहि मे पहिल ५ वर्ण, दोसर मे ७ आ तेसर मे फेर ५ वर्ण ।
२= संयुक्त वर्ण सेहो एक्कहि वर्ण मानल जाइत अछि ।
३= किछु हाइकुकार एक्कहि
वाक्य के ५–७–५ वर्ण के क्रम मे तोडि़ कऽ लिखैत छथि जे सर्वथा गलत अछि ।
वास्तव मे प्रकृतिक मनमोहक चित्रणक हेतु हाइकु एकटा सशक्त विधा मानल जाइत अछि । कम शब्द मे ‘घाव करत गंभीर’ सन भाव मे समेटने एकटा पूर्णताक बोध करबैत अछि हाइकु ।
हमरा समक्ष मे मैथिली आ नेपाली साहित्यक अत्यन्त प्रखर, उत्साही, तिरहुता लिपिक अभियानी विनीत ठाकुरजीक हाइकु संग्रह ‘वसुन्धरा’क पाण्डुलिपि राखल
अछि । प्रकृतिगत चित्रण
हो अथवा जीवनक कोनो यथार्थ सन्दर्भक आकलन
। सुन्दर, सटीक आ भाव दिश गंभीर बला अर्थ के सार्थक करैत हाइकु के जोहने छथि । हम हुनक मेहनत आ लगनशीलता के पूर्वे सँ प्रशंसक रहलहुँ अछि आ एहि हाइकु संग्रह सँ त आओर बढ़बे कएल अछि ।
हाइकु अन्तरिक्षक एकटा नव उपग्रह : वसुन्धरा | Haiku Antrikshak ekta Nav Upgraha : Vasundhara Maithili Haiku Sangraha by Vineet Thakur in Mithilakshar (Tirhuta) Script. Maithili Haiku Sangraha
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