'हाइकु’ लघुतम आ सूक्ष्म भाव भरल कविता अछि । हाइकुक वण्र्य विषय प्रकृति, रीतिरिवाज, खेत–खरिहान, गाछ–वृक्ष, ऋतु परिवत्र्तन, चुट्टी–पिपरी, पशु–पंक्षी आदि सँ विशेष रुपेँ लेल जाईत छैक तैँ ‘हाइकु’ विधाक आधार प्रकृति अछि । तसर्थ हाइकु के प्रकृति काव्य कहल जाईत छैक । विनीतजीक हाइकु संग्रह ‘वसुन्धरा’मे प्रकृतिक विहंगम दृश्य सूक्ष्म रुपेँ सजीव भऽ मूत्र्त रुप मे प्रकट भेल अछि जे हुनक साहित्य–साधनाक परिणाम अछि । कविक दुटा हाइकु प्रकृतिक चित्र लऽ स्थापित भेल अछि से द्रष्टव्य अछि :–
डोकहर के
लग मे गहुमन
उगले विष ।
घोटि कऽ मृग
अजगर अचेत
पिबे बसात ।
एहने प्रकृतिक चित्र सब स्थापित करैत एहि हाइकु संग्रह ‘वसुन्धरा’पुस्तक मे १०० हाइकु संग्रहीत अछि । सब हाइकु उपरिजुपरि अछि । कोन नीक कोन अधलाह नहि कहल जा सकैत अछि । अतः संक्षेप मे ई कहल जा सकैत अछि जे कवि विनीतजी अपन सब हाइकु मे प्रकृति प्रेम, हर्ष–विषाद, आशा–निराशा आदि सब के समुचित समन्वय कएने छथि । तैँ ‘वसुन्धरा’क रुप मे ई हाइकु संग्रह मननीय, पठनीय आ संग्रहणीय पुस्तक अछि । आशा अछि पाठक लोकनि एहि संग्रह के समादृत करथिन्ह जाहि सँ विनीतजीक साहित्यिक प्रतिभा आ साधना मे उत्तरोत्तर वृद्धि हेतन्हि । हुनका हार्दिक बधाई ।
रमेश झा
सह–प्राध्यापक
केन्द्रीय संस्कृत विभाग
त्रि=वि=वि= कीर्तिपुर
रमेश झा | Ramesh Jha | सह–प्राध्यापक | Lecturer | केन्द्रीय संस्कृत विभाग | Sanskrit Central Depart Ment T. U. | त्रि.वि.वि. कीर्तिपुर | Tribhuwan University | Kirtipur | Mithilakshar | Tirhuta | New Maithili Song Mp3
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